महंत श्री दिनेश कुमार जी महाराज

आपका जन्म हरियाणा में एक मध्यवर्गीय किसान के घर हुआ। आपके पिताजी श्री राम किशन जी व माता श्रीमती बिमला देवी जी हैं। आपने अपनी प्राथमिक शिक्षा नवोदय विद्यालय से ग्रहण की। उसके उपरांत आपने अपनी उच्चतर शिक्षा स्नातक महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक व स्नातकोत्तर गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय, हिसार (हरियाणा )से प्राप्त की । तत्पश्चात विद्यावाचस्पति (पी०एच०डी० रसायन शास्त्र) की डिग्री प्राप्त की। प्राथमिक शिक्षा से पी०एच०डी० तक की शिक्षा प्राप्त करने में आप अति तीव्र बुद्धि के मालिक रहे। आपको अपनी कक्षा में सदैव पहले तीन स्थान (प्रथम, द्वितीय व तृतीय) में आने के अलावा कभी मंजूर नहीं रहा। पढ़ाई के साथ-साथ आपको स्कूल, महाविद्यालय व विश्वविद्यालय में अन्य रचनात्मक गतिविधियों (विशेषतया संगीत) में बहुत रुचि थी । आपने अपने सभी शिक्षा के संस्थानों का संगीत की विधाओं में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में प्रतिनिधित्व किया व अनेकों पुरस्कार जीते। आपने पढ़ाई में तीव्र बुद्धि, शारीरिक सुंदर व्यक्तित्व, सौम्य आचरण, व्यवहार, उत्तम संस्कारों, दिल व दिमाग के विलक्षण गुणों से अपने सभी शिक्षकों का सदा के लिए मन जीत लिया। उनके दिलों में स्थाई जगह बनाई । आप जैसे विलक्षण विद्यार्थी/ शिष्य को शिक्षा देकर वे सभी अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है।

व्यवसाय

आपने अपनी तीक्षण बुद्धि के बल पर कठिन परीक्षाओं को पास करके केंद्र के विभिन्न विभागों में अधिकारी की नौकरी प्राप्त की। अंत में आप केंद्र सरकार में कार्यरत रहे , लेकिन अपने गुरु का आदेश “कुछ भी हो सेवा नहीं छोड़नी” का पालन करते हुए स्वेच्छा से सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया ।

आध्यात्मिकता
आपके माता-पिता से ज्ञात हुआ कि आप बचपन से ही आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। बचपन से ही आपके अंदर स्वाभाविक आध्यात्मिकता दिखाई देने लग गई थी। गांव के अन्य बाल साथी जब खेलकूद में व्यस्त रहते तो आप अकेले में रहकर प्रकृति के बारे में व अपने देवी देवताओं के बारे में सोचते रहते। बचपन में आपकी इस तरह की सोच को देखकर आपके माता-पिता हैरान रहते। ऐसा लगता मानो कि आप कोई असाधारण बालक हो। ईश्वर के प्रति बचपन में इतना लगाव आपके स्वभाव का हिस्सा बनता जा रहा था। आपका रहना, बोलना, व्यवहार आदि बाकी अन्य बच्चों से भिन्न व अद्भुत था। फिर वक्त ने करवट ली और आपके परिवार में किसी पारिवारिक दोष के फलस्वरुप अचानक भयानक शारीरिक, आर्थिक व दैविक संकट ने दस्तक दे दी। घर की व परिवार के सभी सदस्यों की दिन प्रतिदिन स्थिति व परिस्थिति बद से बदतर होती चली गई। घर में हर चीज का अकाल पड़ना शुरू हो गया। पितृ दोष सर चढ़कर बोलने लग गया और उसने आपको आपके शरीर के माध्यम से संकट पेशी के रूप में सताना शुरू कर दिया। आपके माता-पिता आपको इलाज के लिए इधर-उधर ले जाने लगे। अंततः आपके पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों/ प्रारब्ध के फलस्वरुप आपको संकट से मुक्ति दिलवाने के लिए विश्व विख्यात श्री बालाजी धाम, मेहंदीपुर (राजस्थान) में ले जाया गया। जहां आपका न केवल संकट कटा बल्कि वहां आपकी एक पुण्य आत्मा व श्री बालाजी महाराज के अनन्य भक्त श्री छाजू राम जी से मुलाकात हुई। उनको आपने अपना गुरु मान लिया और उन्होंने आपको शिष्य बना लिया। आपका उनके गाँव( आदमपुर डाढी ) आश्रम स्थान पर आना-जाना शुरू हो गया। उनके आशीर्वाद से आपके संकट का संपूर्ण रूप से सदैव के लिए निवारण हो गया। आपके गुरु जी दैहिक, दैविक व भौतिक तापो/ संकटों से पीड़ित परिवारों को अनेक संकटों से छुटकारा निस्वार्थ रूप से किया करते थे। एक दिन उन्होंने आपके अंदर मौजूद सभी गुणों, जो एक सच्चे शिष्य में होने चाहिए, को देख कर आपको उन्हीं की तरह निस्वार्थ भाव से जनमानस के अनेक संकटों के छुटकारे के लिए ’दिव्य दरबार’ लगाने का आशीर्वाद दे दिया और फिर कुछ समय के पश्चात आपके पूजनीय गुरु जी ब्रह्मलीन हो गए। उनके इसी पुण्य आशीर्वाद व आदेश का पालन करने के लिए आप अपने सानिध्य में निर्माणाधीन श्री बालाजी धाम हांसी हिसार (हरियाणा) में हर महीने चांदनी/ शुक्ल (एकादशी, द्वादशी त्रयोदशी, चतुर्दशी, व पूर्णिमा को) 5 दिन का दिव्य दरबार लगाते हैं। जनमानस की यह सेवा अब आपके जीवन का पहला व अंतिम उद्देश्य बन गया है, जिसके लिए आपने बड़े-बड़े वेतन वाली अधिकारी के पद की सेवा एवं अन्य भौतिक सुखों को सदा के लिए त्याग दिया। इसी निस्वार्थ सेवा को जनमानस तक पहुंचाने के लिए देश-विदेश के अलग-अलग स्थानों पर ’दिव्य दरबार’ लगाए जा रहे हैं जहां संकट पीड़ित लोग अपने संकटों से सदा के लिए छुटकारा पाकर सुखमय जीवन जी रहे हैं। संकटों से छुटकारे के अतिरिक्त आप अति पढ़े लिखे शिक्षित होने के नाते जनमानस में संस्कार, संस्कृति, सनातनता, शिक्षा, अंधविश्वासों से छुटकारा, शुद्धता, स्वच्छता, अपने सनातनी देवी– देवताओं के प्रति जागरूकता, राष्ट्र प्रेम, सामाजिक सद्भाव आदि का निरंतर संचार करने में पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध है व निरंतर सेवारत है। धन्य है भारत भूमि व धन्य है वो माता-पिता जिन्होंने आप जैसी दिव्य आत्मा को जन्म दिया , जिनके दर्शन मात्र से मनुष्य में स्वत: सकारात्मकता उजागर हो जाती है। धन्य है आप। जनमानस पर आपका आशीर्वाद व अनुकम्पा सदैव बनी रहे ।

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आरती का समय: मंदिर के कपाट खुलने व बंद होने का समय

मंदिर का समय:

प्रतिदिन - प्रातः 8:00 बजे - रात्रि 8:00 बजे

आरती का समय:

ग्रीष्मकालीन - सुबह की आरती 06:15 बजे और शाम 7:00 बजे

शीतकालीन - सुबह की आरती 7:00 बजे और शाम 6:00 बजे

विश्राम का समय :-

दोपहर 12 बजे

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